बचपन की यादो के सफर का एक साथी खटनी जिसको भुला पाना मेरे लिए मुमकिन नही है , मन किया आज इसके लिए कुछ लिखता हु जो इस प्रकार है -- एक वि...
बचपन की यादो के सफर का एक साथी खटनी जिसको भुला पाना मेरे लिए मुमकिन नही है , मन किया आज इसके लिए कुछ लिखता हु जो इस प्रकार है --
एक विशाल वृक्ष था मेरे बचपन में ,
जो मुझको पास बुलाता था !
जब खेत में काम करके थकता था ,
वह अपनी ठंडी छाव में मुझे सुलाता था !!
तपती धुप से गुजर रहे राहगीर को भी ,
ये वृक्ष बहुत लुभाता था !
हर कोई वहा से आने जाने वाला,
इसकी छाँव में सस्ताता था !!
रिमझिम बारिश के मौसम में,
यह वर्षा में भीगने से बचतता था !
आता था जब आम का मौसम,
तब सबको छककर आम खिलाता था !!
एक नही, बल्कि दो गाव के लोग,
अक्सर इसके पास आते थे !
और थैले भरभरकर अपने घर ,
इसके आम ले जाते थे !!
ये बेचारा बिना कुछ लिए,
सबको अपने आम खिलाता था !
फिर भी ये निर्दयी लोग इस,
बेचारे पर लकड़ी डंडे बरसाते थे !!
मै देखता था अक्सर कुछ लकड़ी बीनने वाले ,
इसकी लकड़ी चुगकर ले जाते थे !
जिनसे वो अपने घरो के ,
चूल्हे को जलाते थे !!
इसके आम खट्टे होते थे ,
इसलिए हम इसे खटनी बुलाते थे !!
- मनोज कुमार
बचपन की यादो के सफर को जारी रखते हुए , खटनी की आगे की बात भाग २ में लेकर आऊंगा आपके लिए
तब तक के लिए नमस्कार ! आपका दिन शुभ हो !
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