अभी हल ही रिलीज हुयी फिल्म " पिंक "इन दिनों काफी चर्चा में है। कुछ लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं तो कुछ इसको भारतीय सिनेमा की ए...
अभी हल ही रिलीज हुयी फिल्म " पिंक "इन दिनों काफी चर्चा में है। कुछ लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं तो कुछ इसको भारतीय सिनेमा की एक बहुत ही उम्दा फ्लिम बता रहे हैं। आलोचना करने वालो में कुछ जाने माने फिल्म समीक्षक भी है। कल मैं भी यह फिल्म देखकर आया।
फिल्म ने समय समय पर भावुक कर दिया। यह फिल्म हमारे भारतीय समाज में लड़कियों के प्रति अधिकतर जनता का क्या दृष्टिकोण रहता है उसको उजागर करती है। यह फिल्म ऐसे हालात को सामने रखती है - ताकि आप उन तमाम हिस्सों में दिखाई गई बातों को अपने सामाजिक जीवन से जोड़ सकें। समाज में स्त्रियों को कैसे कैसे तंज , टोंट और सवालो को सुनना पड़ता है, झेलना पड़ता है , उनका सामना करना पड़ता है इन इन सभी बातो को बहुत सजीव दर्शया गया है।
इस फिल्म में कोर्ट में केस की सुनवाई के दौरान उन लड़कियों को वेश्या सिद्ध करने की कोशिश में जो तर्क दिए गए वो हमे न सिर्फ सोचने पर मजबूर करते हैं बल्कि जो समाज की कुण्डित सोच को भी दर्शाते है , यहाँ मैं केस के दौरान पूछे गए एक ऐसे ही सवाल का जिक्र करता हु।
केस दौरान फिल्म के पात्र राजवीर तर्क देता है कि "ये हमें हिंट दे रहीं थीं।"
जवाब में लॉयर सहगल ( अमिताभ जी ) पूछते हैं "कैसे?"
राजवीर - "हँस कर और छू कर बात कर रही थीं।"
यह जवाब सुनकर में अमिताभ जी की आँखें का जो हाव भाव मुझे देखने को मिला ,वही विडम्बना हर पुरुष की आँखें में होनी चाहिए। फिल्म में इस जवाब के माध्यम से यह व्यक्त किया गया है की हम यह क्यों मान लेते हैं कि हँसती हुई लड़कियाँ सहजता से 'उपलब्ध' होती हैं। क्यों समझ लेते हैं कि जो लड़की हंस हंस कर बात करती है वह हमबिस्तर भी हो सकती है आखिर क्यों ? यह एक कुंठित सोच नहीं है तो और क्या है ?
फिल्म में लड़कियों से जुड़े कुछ अन्य सवालो को भी उजागर किया गया है जैसे कि यदि अकेले रहने वाली तीन लड़कियाँ देर रात रॉक शो जातीं हैं ,'उस' तरह के कपड़े पहने, लड़कों से घुल मिल कर बात करती हैं , न सिर्फ बाते करती हैं बल्कि उनके साथ जाकर कमरे में शराब भी पीती हैं तो उनके इस व्यवहार से यह क्यों मान लिया जाता वो 'सेक्स' में इंट्रेस्टेड हैं ? क्या यह कुंठित सोच नहीं है ?
हमारे समाज में आख़िरकार लड़कियों को यह सब करने का अधिकार जो नहीं है। यह सब तो अधिकार लड़कों का एक जन्मसिद्ध अधिकार के तरह प्राप्त है और फिल्म में दर्शाया गया है कि अगर लडकियां ऐसा करेगी तो लड़के उसे 'सबक़' सिखाएँगे। यह सबक़ सिखाने वाली प्रवृत्ति भी पुरूषों को जन्म से ही मिली है फिल्म के पात्र राजवीर और उसके दोस्त भी यही 'ट्रेडिशन' फ़ॉलो कर रहे हैं।
फिल्म के अंत में अमिताभ जी ने जो वाक्य बोला वही इस फिल्म का सन्देश है जिसे समाज को समझना होगा , उस पर अमल करना होगा। " नो मीन्स नो ", उसको बोलने वाली लड़की चाहे कोई परिचित हो , अपरिचित हो , फ्रंड हो , ग्रिल फ्रंड हो ,सेक्स वर्कर हो या फिर खुद की पत्नी क्यों न हो।
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