सू रज की तपिश में नरमी को ढूंढ़ता हूँ ! तपती हुयी दोपहरी में पेड़ो की छाँव ढूंढ़ता हूँ !! जिस देश में होती थी कभी पेड़ पौधों की पूजा ! उस ...
सूरज की तपिश में नरमी को ढूंढ़ता हूँ !
तपती हुयी दोपहरी में पेड़ो की छाँव ढूंढ़ता हूँ !!
जिस देश में होती थी कभी पेड़ पौधों की पूजा !
उस देश में अब उस खोयी हुयी खुशहाली को ढूंढ़ता हूँ !!
जिस देश में होती थी कभी पेड़ पौधों की पूजा !
उस देश में अब उस खोयी हुयी खुशहाली को ढूंढ़ता हूँ !!
राजनीती में अक्सर उस राज को ढूंढ़ता हूँ !
जो करे देश की जनता का भला ऐसे प्रयास ढूंढ़ता हूँ !!
जो करे देश की जनता का भला ऐसे प्रयास ढूंढ़ता हूँ !!
बस इस देश में एक नये संचार को ढूंढ़ता हूँ !
मैं कुछ ढूंढ़ता हूँ ,बस यही सब कुछ ढूंढ़ता हूँ !!
नोट – ये मेरी कविता के कुछ अंश है जिनको मै यहाँ शेयर कर रहा हूँ इसको कोई अन्य अपने नाम से प्रकाशित न करे !
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